Vaidika Bharata

हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,
आओ विचारें आज मिल कर, ये समस्याएँ सभी,
भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ,
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल कहाँ,
सम्पूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है,
उसका कि जो ऋषि-भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है,
यह पुण्य-भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी आर्य हैं,
विद्या, कला, कौशल्य, सबके जो प्रथम आचार्य हैं,
सन्तान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े,
पर चिह्न उनकी उच्चताके, आज भी कुछ हैं खड़े,
वे आर्य ही थे, जो कभी अपने लिए जीते न थे,
वे स्वार्थरत हो मोह की मदिरा कभी पीते न थे,
वे मन्दिनी-तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा,
पर दु:ख देख, दयालुता से द्रवित होते थे सदा,
संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी,
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से बैठ सकते थे कभी,
फैला यहीं से ज्ञान का आलोक सब संसार में,
जागी यहीं थी, जल रही जो ज्योति अब संसार में,
वे मोह-बन्धन मुक्त थे, स्वच्छन्द थे, स्वाधीन थे,
सम्पूर्ण सुख-संयुक्त थे, वे शान्ति-शिखरासीन थे,
मनसे, वचनसे, कर्मसे, वे प्रभु-भजन में लीन थे,
विख्यात ब्रह्मानन्द नद के, वे मनोहर मीन थे
--- कविप्रवर श्री मैथिली शरण गुप्त की रचना भारत - भारती से उद्धृत
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